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लोककथा संग्रह

लोककथ़ाएँ


भूत आया: मणिपुरी लोक-कथा

जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग जंगली पशुओं से प्रेम करते हैं। जंगलों से उनका बहुत गहरा नाता है। वे पशुओं का मांस भी खाते हैं साथ ही उनको अपना मित्र भी मानते हैं।

लाखेर जाति में बंदर को एक समझदार और भावुक जानवर के रूप में जाना जाता है। बंदरों के विषय में वहाँ बहुत-सी लोककथाएँ भी प्रचलित हैं।

जो कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं, वह आज भी बहुत शौक से सुनी-सुनाई जाती है। हुआ यूँ कि एक बार एक गरीब किसान के घर खाने को कुछ न था। उसकी पत्नी ने सलाह दी कि वह कुछ केकड़े पकड़ लाए। किसान थैला उठाए चल दिया।

सारा दिन बेचारा केकड़ों की टोह में घूमता रहा। अंत में थककर एक पेड़ के नीचे सो गया। केकड़ों वाला थैला पास ही पड़ा था।

बंदरों का एक दल सुबह से उसकी परेशानी देख रहा था। एक दयालु बंदर ने सबको सुझाव दिया।
'क्यों न हम इस किसान के थैले को केकड़ों से भर दें! वह उन्हें देखेगा तो खुश हो जाएगा।'
सभी बंदर फुर्ती से इस काम में जुट गए। कुछ ही देर में थैला भर गया। बंदर उसे आदमी के पास रखकर पेड़ों की आड़ में छिप गए। वह उस किसान के चेहरे पर छाई खुशी देखना चाहते थे।
करीब दो घंटे बीतने पर भी थके हुए किसान की नींद नहीं टूटी। न ही उसने करवट बदली। दल का बंदर नेता बोला।
'लगता है यह आदमी मर गया।'

सारे बंदर दुखी हो गए। उन्होंने तय किया कि वे मरे हुए किसान को उसके घर छोड़ आएँगे। नहीं तो उसकी पत्नी उसे ढूँढ़ती रहेगी। सभी बंदरों ने किसान को बहुत संभालकर प्यार से उठाया और घर ले चले। ज्यों ही उन्होंने किसान को घर के दरवाजे पर उतारा और लौटे, तभी किसान की नींद खुल गई। अपने आपको और भरे हुए थैले को पाकर किसान समझ गया कि यह मेहरबानी बंदरों की थी।

उसने अपनी पत्नी को बंदरों के बारे में बताया। अगले दिन उसकी पत्नी ने पड़ोसिनों से कहा और इस तरह शाम तक पूरे गाँव में बंदरों की दयालुता की चर्चा होने लगी।

गाँव का एक अन्य युवक बहुत आलसी और कामचोर था। दिन-भर चारपाई सोता। काम के नाम पर उसकी नानी मरती। उसने योजना बनाई कि वह भी किसान की तरह खाली थैला लेकर जाएगा। बंदर उसे घर भी पहुँचा देंगे और थैला भी भर देंगे।

अगले दिन वह फटे-पुराने वस्त्रों में वहाँ जा पहुँचा और पेड़ के नीचे सोने का बहाना कर पड़ गया। बंदरों ने उसका भी खाली थैला केकड़ों से भर दिया। चालाक युवक दम साधे पड़ा रहा। दल का बंदर नेता उसे देखकर बोला, 'लगता है यह भी मर गया।'

चलो बेचारे को घर पहुँचा आएँ। कहकर बंदरों ने उसे प्यार से उठा लिया। मन ही मन उस युवक को बहुत हँसी आ रही थी। वह सोच रहा था-
कैसा मूर्ख बनाया, मजा आ गया।

बंदर जब उसे एक तीखी ढलान से लेकर उतरने लगे तो वह घबरा गया। वह डर गया कि कहीं बंदर उसे गिरा न दें। वह आँखें खोले बिना चिल्लाया, 'संभालकर ले जाना, कहीं गिरा न देना।'

उसकी आवाज सुनकर बंदरों ने समझा कि मरे हुए आदमी की आत्मा बोल रही है। वे बंदर भूत-भूत पुकारते हुए भाग खड़े हुए आलसी और चालाक युवक ढलान पर लुढ़कता चला गया और दम तोड़ दिया।
देखा आपने, दूसरों से छल करने पर ईश्वर कैसा दंड देता है?

(रचना भोला यामिनी)

***
साभारः लोककथाओं से साभार।

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